हँसी-हथौड़े का कारीगर : श्री राधेश्याम जी कुमावत

                                         समर शिरोमणि राणा सांगा की तलवारों की टंकार और भक्त शिरोमणि मीरा के गुंगरूओं के युगल स्वरों से अहर्निश गूंजायमान तीर्थराज चित्तौड़गढ़ शहर के जूना बाजार निवासी कुमावत क्षत्रिय समाज के समस्त सुवासित बहुरंगी पुष्पों की पुरूषार्थी वाटिका में एक श्यामवर्णी पुष्प को स्व. श्री मन्ना लाल जी के नाम से पुकारा जाता था, जिनकी जीवन संगिनी स्व. रूकमण बाई चित्तौड़गढ़ निवासी स्व. श्री घनसीरामजी लारना की सुपुत्री थी।
                                      सुदर्शन सदृश्य काल चक्रों पर सवार गोलाकार समय सारथी का शाश्वत स्वभाव सतत् परिवर्तनशील होता है। आज से 73 वर्ष पूर्व उक्त वर्णित कुमावत कुल में स्वर्गीय श्री राधेश्याम जी का जन्म हुआ जो निकटतम् उच्च प्राथमिक विद्यालय भाटाफोड़ की कक्षा 7वीं में अध्ययनरत थे कि समय पूर्व ही, बचपन के करकमलों से ही अर्थोपार्जन का कठिन बिगुल बज उठा, तब से ही ये अकेला हाथ पाणिग्रहण का और अन्तर्मन रूपी एकाकी फूल, अब नैसर्गिक सुगन्धों से सुवासित वरमाला का तलबगार हो गया। सतरवें वर्ष में फिर नव सौभाग्य ने युगल नयन खोले, ननिहाल के गांव कुमारिया खेड़ा में चित्तौड़गढ़ निवासी स्व. श्री शिवलाल जी गेंदर (होलाबा) की सुकन्या, स्व. श्री गिरधारीलाल जी, स्व. श्री नारायणलाल जी और स्व. श्री बंशीलाल जी की बहिन कमला बाई के संग पीले हाथ होते ही पारिवारिक एवं विभिन्न सामाजिक उत्तरदायित्वों का भार बढ़ गया। कठिन एवं दुर्लभ अर्थशास्त्र का एक छोटा सा आकर्षक सिद्धान्त आपकी अंगुली पकड़ कर सर्वप्रथम आपको अपने केलु वाले मकान से पान की दुकान तक ले गया जिसे कुछ महिनों बाद अलविदा कहना पड़ा।
                                       आपके बहुआयामी व्यक्तित्व को अर्थोपार्जन की उत्कंठा और किशोरावस्था की अल्हड़ जीजिविषा विभिन्न प्रकार के आकर्षक एवं लुभावने आमंत्रण देने लगे।
कुछ समय बाद ही खानदानी काम में पूज्य पिताजी के साथ सिलावटी कार्य प्रारम्भ किया। आप भारतीय स्थापत्य कला, वास्तुसिद्धान्तानुसार शिल्प शास्त्र के परमोपयोगी व्यावहारिक पृष्ठों को पढ़-पढ़ कर देख-देख कर प्रायोगिक परीक्षणोपरांत आत्मसात् करते रहे। शनैः शनैः भवन-निर्माण कार्य से संबंधित सभी प्रकार के कार्य मंदिर-निर्माण से संबंधित गूम्बज और शिखर निर्माण के आप सुविख्यात मिस्त्री बन गए। चित्तौड़गढ़ शहर के रेल्वे काॅलोनी में अम्बा माता का मन्दिर, सुनारों का मन्दिर, छबीला हनुमान मंदिर का शिखर, ढूंचा पर महादेव मन्दिर, खड़िया घाटा महादेव, खामका बालाजी, पास ही स्थित खड़ी बावड़ी में हनुमान मन्दिर, माताजी की ओरड़ी में हनुमान मंदिर आदि कई निर्माण कार्यो में एक विशेषज्ञ के रूप में आपकी चिरस्मरणीय एवं सराहनीय भूमिकाएं रही।
आपका आर्थिक जीवन इन्द्रधनुष की भांति बहुरंगी एवं सर्वाकर्षक रहा। चार वर्षो तक ड्राईवर (उस्ताद) का कार्य करते हुए ‘‘रमता जोगी बहता पानी’’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए ज्ञान व अनुभव के निजी चश्मंे से दुनियादारी की बारीकियों को समझते रहे। इस प्रकार बूंद-बूंद कर स्वानुभव का घड़ा भरता रहा। संगीतमय आवाज, आशुकवित्व, अद्भुत स्मरण शक्ति, न्यायप्रियता, तार्किक एवं विश्लेषणात्मक बौद्धिक कौशल, विशिष्ठ अभिव्यक्ति, जन-जन से गहन सम्पर्क और किसी मुद्दे के बारे में उसकी पहली परत से आखिरी परत तक सूक्ष्मावलोकनोपरांत न्यायोचित तार्किक विवेचन करते हुए निर्भीक होकर श्रेष्ठ निर्णय देने जैसी कई विशिष्ठताएं इस बहुमंुखी प्रतिभा के धनी को माता सरस्वती ने प्रदान की।
                                      कई प्रकार के सामाजिक कार्यों के साथ-साथ पंच-पंचायती में भी यथासंभव हिस्सा लेते हुए जावदा नीमड़ी, भीलवाड़ा, दरिबा, भीचोर, मन्दसौर, संदेसर, बामणिया आदि गांवों-शहरों में कई बार जा-जाकर वहां की पंच-पंचायती में दस-बीस नहीं वरन् सैकड़ांे सामाजिक फैसलों मंे आपने नीर-क्षीर विवेकानुसार श्रेष्ठ भूमिकाओं का निर्वहन करते हुए अपने बौद्धिक एवं वाचिक प्रतिभा से उलझे हुए सैकड़ों मामलों को सुलझााने में यथाशक्ति सहयोग दिया।
                                       चित्तौड़गढ़ में विगत दो सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में आपने अनुकरणीय निदानात्मक भूमिकाओं का निर्वहन करते हुए सम्पूर्ण कार्यक्रमों को सभी के सहयोग से सफलता की उस ऊँचाई तक ले जाने में सफल हुए जिसे आगामी कई वर्षों तक याद रखते हुए हमारे नवयुवक प्रेरणाएं लेते रहेंगे।
                                       जीवन में यँू ही नित नए अनुभवों का सम्मिश्रण होता रहा। मुसाफिर चलता रहा कारवां बढ़ता रहा। आपने कृषि कार्य में भी आत्मगौरव का सुखद अनुभव करते हुए विगत पाँच-सात वर्षों में रजका बेच-बेच कर प्राप्त होने वाली राशि से गृहस्थ धर्म की जीवन गाड़ी को  प्रगति पथ पर अनवरत आगे बढ़ाते रहे।
                                       जीवन में माता-पिता का वात्सल्यमय आशीर्वाद के साथ-साथ ही श्री घीसूलाल जी, श्री रामेश्वर जी का भ्रातृत्व भाव, बहिन देऊबाई-श्री मदनलाल, श्री राजेन्द्र, स्व. श्री सत्यनारायण, श्री दशरथ, तारा, प्रेम आदि सभी का पारिवारिक सम्बल समस्त पोता-पोती, दोहते-दोहिती की तुतलाती बोलियों, सैकड़ो नहीं हजारों आत्मीयजनों की कोटि-कोटि शुभकामनाएं और विशिष्ट देवानुकम्पाओं के समेकित प्रभाव से आपने मनुष्य जीवन की सार्थकता प्रमाणित कर दी।
                                      जीवनभर उतार-चढ़ाव आते रहे, सन् 1981 में डाॅ. एस. के. गुप्ता ने साढ़े छः घंटे तक पूरे शरीर का आॅपरेशन कर आपको नया मनुष्य जीवन दिया। उक्त वर्णित आॅपरेशन को इण्डियन मेडिकल साईन्सेज ने इण्डिया का छठा मेजर आॅपरेशन स्वीकार किया। श्रद्धेय श्री खूबीराम जी का शिष्य, ऊंकार जी मिस्त्री का मित्र, स्व. श्री राधेश्याम जी ने निर्माण कार्य के समय में से कुछ-कुछ समय निकालते हुए कभी छबीले हनुमान जी, कभी चारभुजा मंदिर, कभी अन्यत्र, प्रिय मित्रवर श्री दुर्गाशंकर जी सुखववाल, तुर्रा अखाड़़ा के मुख्य स्व. श्री चेनराम जी गौड़ कभी स्व. श्री नानुराम जी ढोली के साथ सस्वर भजन गाते हुए हजारों भक्तों को भक्ति रस में आकंठ डुबोते हुए कोटि कोटि जनों को भाव विभोर कर दिया।
                                      भवन निर्माण के ज्ञानानुभवों की हस्तान्तरण प्रक्रिया में श्री चेना जी बलाई श्री हीरा जी बलाई, पुत्र राजेन्द्र कुमार आदि कई आपके यशस्वी शिष्य हुए जिन्होंने अनेक श्रेष्ठ भवन बनाए हैं।
विधाता की भाग्य लिपि कहाँ सुस्पष्ट एवं पठनीय होती है। कौन जानता था कि इतना स्वस्थ व्यक्ति और व्यक्तित्व पहाड़ो, चट्टानों पत्थरों और मिट्टी के ढेलों से ताजिन्दगी खेलने वाला यह लाजवाब होंसला एक छोटे से मामूली पत्थर की चोट से इस कदर टूट जाएगा।
                                      दिनांक 08-08-2015 को सामाजिक कार्य में हिस्सा लेकर मोटरसाईकिल से लौटते वक्त शहर के उत्तर पूर्व दिशा में स्थित छाटकाजी के पास दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से सिर में गहरी चोट लगी और हफ्तेभर गहन उपचार चला। ईष्ट-मित्रों को पता चला जब तक यह मौन मुसाफिर हम सब को छोड़कर चला गया। अंतिम संस्कार के वक्त भी तीन घंटे तक आपके ईष्ट मित्र एवं आत्मीयजन भजन गाते हुए मोक्ष की प्रार्थनाएं करते रहे।
आपके जीवन की अच्छी बातों को आत्मसात् करते हुए मिलझुल कर सामूहिक प्रयासांे से समाज व शहर का चहुमुंखी विकास करते हुए आत्म संतोष की परम सुखानुभूति कर सकें। यही उस अथक कर्मयोगी के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी।
मंजिले राह वो भी चलते रहे, ये भी चलते रहे।
देख देख रफ्तार कुछ खिलते रहे, कुछ जलते रहे।।
‘वाणी’ पूछ रहे हजारो अजनबी पते उनके ।।
मशाल ना सही रात भर जो दीप बन जलते रहे।।

शुभेच्छु
  • श्री मदन लाल जी अन्यावडा दे बाई
  • श्री अशोक कुमार बारीवाल
  • तारा देवी
  • श्री सुरेश सिन्धु
  • श्रंजना देवी
  • श्री दशरथ अजमेरा
  • गायत्री देवी
  • श्री कुन्दन मल सिददड
  • बबीता


मनहरण मुस्कान

शक्ति-भक्ति की इस देव-दुर्लभ नगरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर बैरागी कुल श्रेश्ठ स्व. श्रीलाल दास जी के पुत्र स्व. श्रीईश्वरदास जी बैरागी व जानी बाई की गृहस्थ फुलवारी में दिनांक 30.06.1960 को हर पल हँसी बाँटने वाला अमर मुस्कानों का मसीहा श्री माँगीलाल बैरागी नामक एक ऐसा फूल खिला जिसने अपने सर्वोेपकार के दुर्लभ मानवीय गुणों से ना केवल जन्म भूमि को वरन् अपनी कर्मभूमि रावतभाटा के जर्रे-जर्रे को सच्चे भाईचारे और मेहनत की खुशबुओं से सरोबार कर दिया।

  स्व. श्री रमेशदास स्व. श्रीमती भागवंती, श्रीमती हेमा के अग्रज एवं श्रीमती कमला के अनुज स्व. श्री मांगीलाल ने दुर्ग स्थित बाड़ी मंदिर श्री चारभुजा नाथ के महंत 108 स्व. श्री लालदास जी के चरण-कमलों का शिश्यत्व ग्रहण करते हुए बाल्यकाल में ही अध्यात्म जगत के कुछ अनुपम व्यावहारिक अध्यायों का अध्ययन प्रारंभ हो चुका था। गुरूदेव के करकमलों का प्रसाद एवं मुखारविन्द से स्नेहिल, सारगर्भित एवं भक्ति युक्त वाणी ने ऐसे ही कुछ सफलता के मूल मंत्र बताए जिनके अदृश्य प्रभावों से आप इतने अध्ययनशील रहे कि जून 1982 को (हेवी वाटर) रावट भाटा में फायर मेन के पद पर आपने राजकीय नियुक्ति पाई। वक्त का कारवां आगे बढ़ता ही रहा। विद्यार्थी जीवन में ही दिनांक 24.05.1978 को चित्तौड़गढ़ निवासी- स्व. श्री किशन दास जी बैरागी की सुपुत्री कौशल्या के संग पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ। तदुपरांत यह नवल-युगल दाम्पत्यभाव चम्बल की लहरों का हमझोली बन गया।

हेवीवाटर प्लांट कर्मचारियों के राजकीय आवास में माता-पिता के अन्तर्मन केा स्वर्णिम राश्मियों से अनन्त प्रकाशवान करता हुआ दिनांक- 12.4.1980 को पुत्र प्रकाश का जन्म हुआ। दिनांक 23.12.1983 को अन्नू व दिनांक 4.4.1986 को मन्नू की सुमधुर बाल्य किलकारियों से नन्दवन सदृश्य गृहस्थाश्रम का यह पावन उपवन कोयल पपीहे जैसे कलरव से सतत गूंजायमान होता हुआ इन्द्रधनुश की भांति बहुरंगी अनुभूतियों के साथ अर्जित पूर्णता के प्रकटीकरण हेतु व्याकुलता दर्शाने लगा।
श्री मांगीलाल एक अथक परिश्रमी, शांत-सरल स्वभाव से युक्त समस्त जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने वाले वात्सल्य भाव की जीवन्त प्रतिमा और अनुकरणीय हास्य प्रवृत्ति का यह अनूठा कर्मयोगी ताजिन्दगी किसी की तारीफ का तलबगार नहीं रहा।

‘‘संत हृदय नवनीत समाना’’ की उक्ति का पर्याय, जीवन पर्यन्त दूसरों की हर संभव मदद करते हुए अपने अगले जन्मों के कंटकाकीर्ण मार्गो को निश्कंटक बनाते रहे।

इस शट्रस भोजन-प्रेमी को जन्म से ही एक चिर स्मरणीय शिक्षक सा भावुक हृदय भी मिला। आपने आजीवन कन्या-शिक्षा के भरपूर समर्थक एवं उल्लेखनीय दानवीर के रूप में खूब प्रसिद्धि पाई। कई कन्याओं को पढ़ाने-लिखाने के सतत् प्रयासों की व्यस्तता में पता ही नहीं चल पाया कि स्वयं की सीता-गीता जैसी दोनों बालिकाएं विवाह योग्य हो गई। आप योग्यवरों को दूढ़ने में लग गए। अच्छे मन से किए गए प्रयास शीघ्र ही अच्छे परिणाम लेकर आते हैं।

दिनांक 12.5.2003 को श्रीमान् विभास वैश्णव के साथ अन्नू (अनुराधा), दिनांक 10.5.2006 को श्रीमान् हेमन्त वैश्णव उर्फ ‘संजू’ के साथ मन्नू (मीनाक्षी) और चार दिन पूर्व दिनांक 6.5.2006 को गायत्री के संग भाई प्रकाश के फेरे हुए।

गंभीरी नदी के किनारे बिचलागेला हनुमान जी के सेवक स्व0 श्रीमान् किशनदास जी, पुत्र श्री सत्यनारायण जी, पुत्र श्री कालू (सुभाश) और सोनू (सुनील) के यहां आपका ससुराल होने से वहां समय-समय पर पधार कर आप अनन्त-आत्मीय भाव से कई दिनों तक रहते थे। अपनी वाणी और मधुर मुस्कान से आपने सभी का ऐसा दिल जीत लिया था कि हर आँख हर रोज आपकी प्रतीक्षा करती रहती थी। कई दिनोें तक रहने के बाद भी मनवा तृप्त नहीं होता था।

गत रक्षाबंधन दिनांक 18.8.2016 की संध्याकालीन बेला में समस्त परिजनों के समेवित स्वरो में सासूजी (जीजी), अद्र्धांगिनी कौशल्या, पुत्रियां अन्नू-मन्नू तीनों दोहिते-दोहिती-अनुभास, राघव, जयश्री शालाजी सत्यनारायण जी के पुत्र कालू-सुभाश आदि उपस्थित मेहमानो की अलग-अलग एवं सम्मिश्रित आवाजें शाम की सब्जी मण्डियों की तरह भरपूर कोलाहल से युक्त गृहस्थाश्रम का यह वाणी सिद्ध तपोवन विभिन्न ध्वनि-तरंगों से पूर्ण गूंजायमान हो रहा था, केवल एक अमृत मामा ही स्वभाववश मूर्ति की भांति सभी को सुन रहे थे।

बहुरंगी समय ने रंग बदला और पलंग पर बैठे-बैठे ही आपकी वाणी तनिक असंतुलित हुई फिर उठ कर चलने के प्रयास में जैसे ही पांव लड़खड़ाने लगे कि सभी ने तुरंत उठकर इस प्रकार संभाल लिया कि आप गिरते-गिरते बच गए। कुछ ही मिनटों में आपको सांवलिया चिकित्सालय में भर्ती करा-ईलाज शुरू कर दिया गया। प्राथमिक चिकित्सा उपरांत आपको चित्तौड़गढ़ से कोटा शिफ्ट किया तत्पश्चात् जयपुर।

नाना प्रकार की दवाएं- औशधियां सेवा- सुश्रुशाओं का अनपेक्षित दुःखद परिणाम यही निकला कि दिनांक 13.09.2016 (जलजूलनी एकादशी) को रात्रि 11.30 बजे डाॅक्टर ने अटेण्डेण्ट के रूप में उपस्थित पुत्र को तुरन्त बुला कर कहा हे प्रकाश! वेरी साॅरी, हमारा हर प्रयास असफल हो गया, लगता है अब घोर अंधेरा होने वाला है। अभी डाॅक्टर का वाक्य पूरा हुआ ही नहीं था कि इधर पल-पल मुस्कुरा कर बोलने वाली यह मनहरण हास्य प्रतिमा अगले ही पल पाशाण सी खामोश हो गई और उधर आरजुओं के साथ जिद्दी बालक की तरह उमड़ता हुआ आया आँसुओं का सैलाब मगर फिर भी नतीजा केवल शून्य रहा। हमारी गणनाएं कोरी कल्पनाए सब शून्य में विलीन हो गई। संसार का यह भी एक कटु सत्य है, जिसे हजारो बहती आँखों ने आज फिर बड़े करीब से देखा।

केवल पिंजरा रह गया यहीं पर यार ।
प्यारा पंछी गया चान्द सितारों पार ।।
‘वाणी’ बेषक, सबको जाना एक दिन ।
मगर काष आप ठीक हो जाते एक बार ।।
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जानी ईष्वरदासजी, मात पिता हा आप ।
भाई रमेषदासजी, साथ निभाया आप ।।
साथ निभाया आप, हार्या काम अणगणती ।
हेमा कमला बेन, लाड़ करे भागवन्ती ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, करे बात बड़ा ज्ञानी ।
लाखा-लाखा एक, ईश्वर दास अन जानी ।।
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हाल-चाल बेहाल हा, दवा देवता रोज ।
पड्यो नहीं आराम तो, मनड़ा रोता रोज ।।
मनड़ा रोता रोज, किस्मत की लेणा बांच ।
आय आखरी पाठ, कोई नी बोले हाँच ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, बाल गोपाल बेहाल ।
निकळ्या कतरा साल, हूदर्या कोनी हाल ।।
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आँसू सबकी आँख से, बहते हैं दिन-रात ।
खुले जुबान जब-जब भी, करे आपकी बात ।।
करे आपकी बात, ऐसा कैसे हो गया ।
जिन्दा दिल इंसान, कहो कहां पर खोगया ।।
कह वांणी कविराज, ये षाला ससुर, सासू ।
प्यारे बांधव मीत, सभी बहा रहे आँसू ।।
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लेखक - कवि अमृत ‘वाणी’
अमृतलाल चंगेरिया  (कुमावत)
+91 94131 80558