Shree Murli Manohar kabra : Ahinandan Patra

    गाँव घोसुण्डा के महाजन कुल श्रेष्ठ स्व. श्री जानकीलाल काबरा एवं श्रीमती पार्वती देवी की गृहस्थ वाटिका में दिनांक 01 जनवरी 1960 को मुरली मनोहर नामक एक ऐसा बहुरंगी पुष्प खिला जिसने ना केवल अपने कुल में वरन् शैक्षिक एवं व्यावसायिक जगत में भी अपनी अमिट पहचान बनाई। ग्रामीण परिवेश में बचपन की मधुर स्मृतियों के साथ-साथ माध्यमिक शिक्षा पूर्ण कर उच्च अध्ययन हेतु आप शक्ति-भक्ति की पावन नगरी चित्तौड़गढ़ पधारे, जहाँ आपने सन् 1979 में वाणिज्य संकाय में बी.कॉम की उपाधि प्राप्त करते ही गाँधी शिक्षक महाविद्यालय गुलाबपुरा से 1980 में बी.एड. प्रशिक्षण प्राप्त किया।
जनवरी 1979 में पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ। साढ़े तीन अक्षरों के गाँव बम्बोरी ने श्रीमती अनोख कुंवर के संग परिणय बंधन में बांध कर ढाई अक्षरों के प्रेम का ऐसा पाठ पढ़ाया कि आपके सामाजिक व्यक्तित्त्व में प्रमिला, सुरेन्द्र, अखिलेश जैसे तीन चाँद ने ही चार चाँद लगा दिए।
दिनांक 22.12.1980 का अनन्त आभायुक्त स्वर्णिम दिनकर रा.उ.मा.वि. भादसोड़ा (जिला चित्तौड़गढ़) हेतु द्वितीय श्रेणी वेतन श्रृंखला में नियुक्ति का राज्यादेश लेकर आया। शिक्षा की पावनतम् प्रक्रिया, पढ़ने और पढ़ाने को परस्पर पूर्णतः पूरक मानते हुए आपने अध्ययन के क्रम को गहन विषम परिस्थितियों में भी भंग नहीं होने दिया और स्वयंपाठी के रूप में एकल झुझारू यौद्धा की भाँति अध्ययनशील रहते हुए सन् 1982 में एम.कॉम. की उच्च उपाधि प्राप्त की।
द्वितीय श्रेणी में पंचवर्षीय सेवाकाल की अल्पावधि में ही दिनांक 22.03.85 को आर.पी.एस.सी. से चयनित होकर उसी विद्यालय में आप प्राध्यापक वाणिज्य के पद रहते हुए एक जुग से भी अधिक अर्थात 12( वर्षों तक अपनी अखण्ड सेवाएं दी। ‘रमता जोगी बहता पानी’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए दिनांक 02.07.1997 को दो छतरियों वाली खान के पास स्थित स्थानीय विद्यालय में पधारे यहाँ 15 वर्षो की चिरस्मरणीय सेवाओं सहित 31 वर्षों का सफल सेवाकाल पूर्ण करते हुए समग्र तात्कालीन परिस्थितियों पर न्यायिक दृष्टिपात करते हुए स्व मानस मंथनोपरान्त स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के साहसिक चिंतन को आत्मसात् कर आज साकार रूप दिया।
परम श्रद्धेय काबराजी के बहुमुखी व्यक्तित्त्व में अर्थ के अर्थ और अनर्थ को उनके आकर्षक आवरण से लगाकर अंतिम परत तक बारीकी से पहचानने की दैव प्रदत्त विलक्षण प्रतिभा विद्यमान है, जिसके सहयोग से सहज ही आपने न केवल शैक्षिक जगत बल्कि व्यवसायी समाज में भी कई अनुकरणीय कीर्तिमान स्थापित किए।
श्री मुरली मनोहर काबराजी की मधुर मुरली से लक्ष्मी का आह्वान अर्थात् धनार्जन के विविध सौपानों का सांगोपांग अध्ययन अध्यापन के सुखद सरगमों के बीच यदा-कदा अनपेक्षित गाण्डीव की टंकार एवं पांचजन्य के जयघोष सदृश्य स्वर भी सुनाई पड़ते थे जो आपके निर्भीक न्यायपूर्ण एवं अदम्य स्वाभिमान की स्पष्टाभिव्यक्तियों के नैसर्गिक प्रतीक थे।
राजकीय सेवाओं में 31 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण कर यह अथक आदित्य आज अस्ताचल को ढ़लता है। जीवन के इतिहास का एक विहंगम अध्याय आज अपनी सम्पूर्णता के साथ ही नवीन अध्याय का शंखनाद करता है। यह विद्यालय परिवार मानव सेवा, समाज सेवा और ईश्वरीय चिन्तन में अधिकाधिक समय व्यतीत करते हुए आपके शतायु होने की कोटि-कोटि शुभकामनाएं प्रकट करता है।

दिनांक: 31.07.2012

-ः श्रद्धावनत:-
विद्यालय परिवार, रा.उ.मा.वि., सैंती, जिला-चित्तौड़गढ़ (
राज.)

Shri Man Gajraj Singh Rathore : Abhinandan Patra

परम् आदरणीय
श्रीमान् गजराज सिंह राठौड़, ‘‘कार्यालय सहायक’’
मेवाड़ मालवांचल के सीमावर्ती गाँव अम्बावली जिला प्रतापगढ़ निवासी
श्रीगुलाबसिंह राठौड़ एवं श्रीमती आनन्द कुँवर की गृहस्थ वाटिका में आनंद कुँवर के आनंद को कई गुणा बढाते हुए दिनांक 16.12.1952 को गुलाब का हूबहु हमशक्ल गजराज सिंह नामक एक ऐसा गुलाब खिला जिसनेन केवल खानदानी टहनी को वरन् पूरे गुलशन को ही अपनी खुशबू से सराबोर कर दिया।
    उदयाचल के इस चंचल बाल रवि ने अपनी नैसर्गिंग गति से भावी चौमुखी प्रगति के प्रारम्भिक पाठ पढते हुए प्रतापगढ़ से गोदावत जैन गुरूकुल छोटीसादड़ी की ओर  दम बढाए, जहाँ से आपने उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इस सफल स्वयंपाठी मेधावी अनंत ज्ञान पिपासु ने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से हिन्दी, संस्कृत, समाजशास्त्र से स्नातक एवं समाजशास्त्र में एम.ए.की उपाधियाँ प्राप्त करके राजस्व विभाग के अन्तर्गत उदयपुर जिले की सराड़ा तहसील में दिनांक 29.08.1973 को क.लि. के पद पर राजकीय कार्यभार ग्रहण किया ही था कि इस खुश नसीब गुलाब की सतरंगी पंखुडियां एक-एक कर खुद ब खुद खिलने लगी। 6 माह के प्रारम्भिक अनुभवोपरान्त
राजस्थान आबकारी आयुक्त कार्यालय उदयपुर में कार्यकुशलताओं की कई मधुर स्मृतियों के साथ क.लि. के पद पर खमनोर(हल्दीघाटी) रहते हुए सन् 1980 में व.लि. के पद पर पदोन्नत होकर उदयपुर जिले के रा.मा.वि. भबराना पधारे।
सन् 1981 से रा.उ.मा.वि. धमोतर में लगभग डेढ़ युग तक अपनी सराहनीय सेवाएँ पूर्ण कर सन् 1998 में बारावरदा गए। जहां अनवरत 6 वर्ष रहते हुए 2004 में पदोन्नत होकर का.सहा. कार्यालय जिला शिक्षा अधिकारी (प्रा.शि.) चित्तौड़गढ़ आए। 6
वर्ष बाद सन् 2010 में रमताजोगी बहता पानी की उक्ति को पूर्णतः आत्मसात करते हुए घाट-घाट का पानी पीते हुए इस पानीदार कलमकार का राजकीय यात्रा के अन्तिम मुकाम पर रा.उ.मा.वि.सेंती, चित्तौड़गढ़ में आगमन हुआ ।
भाषा की प्रांजलता, मोती सदृश हस्तलेखन, चित्ताकर्षक सहृयता, हंसवाहिनी के अनंत दुलारे, कुशल शब्दशिल्पी, मौन चित्रकार, विधिज्ञाता, विनोदप्रिय, अल्पभाषी, क्षत्रिय कुलानुकुल स्वाभिमान के अनूठे पूजारी, स्वभाव में न्रमता, मूंछ में वक्रता मुखारविन्द पर सदाबहार स्नेहिल हंसी, गीतों के बेताज बादशाह, हीरकहार सदृश स्मितमयी अखण्ड रसधारी रसना
स्वर्ण रश्मियों से अलंकृत रक्तिम नयन जहां मुसाफिर को आज भी सकुन मिलता यह अर्न्तमन कितना अदभुत मधुवन है।
राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर की कई पत्रपत्रिकाआंे में आपकी रचनाएँ अनेकानेक बार प्रकाशित होती रही। कवि-सम्मेलन के मंचों के चिरस्मरणीय लघु हस्ताक्षर को कभी कंगुरे की चाहत नहीं हुई। नींव के पत्थर बन कर भी अनंत अनुभुतियों के सुख-सागर में आजीवन आकण्ठ आप्लावित रहे। बेडमिन्टन और बॉस्केटबाल 25 वर्षों तलक तारीफे काबिल हमसफर बनकर शिविरा मंत्रालयीक कर्मचारी खेलकूद प्रतियोगिता में न केवल उदयपुर मण्डल का प्रतिनिधित्व कर कई बार राज्य स्तरीय खिताब जीते बल्कि अखिल भारतीय सिविल खेलकूद प्रतियोगिताओं में भी 3 बार चयनित हुए। विभागीय मंत्रालयिक कर्मचारी राज्य स्तरीय सम्मान पाया। साथ ही 15 वर्षों तक लगातार मेवाड़ क्षत्रीय महासभा छोटीसादड़ी के ‘अध्यक्ष’ पद पर रहते हुए समाज-सेवा की। ‘‘कर्मण्यवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन’’ की उक्ति को हृदयस्थ करते हुए सतत सक्रिय इस कर्मयोगी को जौहर स्मृति संस्थान, चित्तौड़गढ़ द्वारा महारानी पद्मनी अलंकरण, उपखण्ड प्रशासन प्रतापगढ़ राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरीय विभिन्न सम्मान ने, आपके बहुमुंखी व्यक्तित्व को समय-समय पर नवाजा और तराशा है।
तेजपाल, चक्रपाल और इन्दिरा तीन सितारों ने ही आपके सामाजिक व्यक्तित्व में चार चाँद लगा दिए। हर्षिता, कीर्ति, नटवरसिंह, धर्मेन्द्रसिंह और वन्दना इत्यादि के समेकित कलरव की सुमधुर अनुगंूज, नवपल्लव से अदृश्य कर-कमल, चिर मंगलाकांक्षियों की थकी-थकी सी नजरें, आज अश्रुमय आनन से अस्ताचल को ढ़लते अथक दिनकर के सफल  साक्षात्कार हेतु चिरप्रतिक्षारत है।
आज संध्यासुन्दरी राजकीय यात्रावृतांत के अन्तिम पृष्ठ पर सत्यम् शिवम् सुन्दरम् लिख इति श्री के हस्ताक्षर करती हुई अगले अरूणोदय की स्वर्णिम सुषमा में जीवन का नवीन विहंगम् अध्याय के शुभारम्भ हेतु अत्यातुर लगती है।
आप स्वाध्यायी, चित्रकारी, साहित्य सृजन, आत्मोद्धार हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते हुए समाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा में सदैव, तत्पर रहेंगे इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ पुनश्च श्रद्धावनत्।



विद्यालय परिवार
रा.उ.मा.वि. सेंती, चित्तौड़गढ़ (राज.)
दिनांक: 31.12.2012
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