परम् आदरणीय
श्रीमान् गजराज सिंह राठौड़, ‘‘कार्यालय सहायक’’
मेवाड़ मालवांचल के सीमावर्ती गाँव अम्बावली जिला प्रतापगढ़ निवासी
श्रीगुलाबसिंह राठौड़ एवं श्रीमती आनन्द कुँवर की गृहस्थ वाटिका में आनंद कुँवर के आनंद को कई गुणा बढाते हुए दिनांक 16.12.1952 को गुलाब का हूबहु हमशक्ल गजराज सिंह नामक एक ऐसा गुलाब खिला जिसनेन केवल खानदानी टहनी को वरन् पूरे गुलशन को ही अपनी खुशबू से सराबोर कर दिया।
उदयाचल के इस चंचल बाल रवि ने अपनी नैसर्गिंग गति से भावी चौमुखी प्रगति के प्रारम्भिक पाठ पढते हुए प्रतापगढ़ से गोदावत जैन गुरूकुल छोटीसादड़ी की ओर दम बढाए, जहाँ से आपने उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इस सफल स्वयंपाठी मेधावी अनंत ज्ञान पिपासु ने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से हिन्दी, संस्कृत, समाजशास्त्र से स्नातक एवं समाजशास्त्र में एम.ए.की उपाधियाँ प्राप्त करके राजस्व विभाग के अन्तर्गत उदयपुर जिले की सराड़ा तहसील में दिनांक 29.08.1973 को क.लि. के पद पर राजकीय कार्यभार ग्रहण किया ही था कि इस खुश नसीब गुलाब की सतरंगी पंखुडियां एक-एक कर खुद ब खुद खिलने लगी। 6 माह के प्रारम्भिक अनुभवोपरान्त
राजस्थान आबकारी आयुक्त कार्यालय उदयपुर में कार्यकुशलताओं की कई मधुर स्मृतियों के साथ क.लि. के पद पर खमनोर(हल्दीघाटी) रहते हुए सन् 1980 में व.लि. के पद पर पदोन्नत होकर उदयपुर जिले के रा.मा.वि. भबराना पधारे।
सन् 1981 से रा.उ.मा.वि. धमोतर में लगभग डेढ़ युग तक अपनी सराहनीय सेवाएँ पूर्ण कर सन् 1998 में बारावरदा गए। जहां अनवरत 6 वर्ष रहते हुए 2004 में पदोन्नत होकर का.सहा. कार्यालय जिला शिक्षा अधिकारी (प्रा.शि.) चित्तौड़गढ़ आए। 6
वर्ष बाद सन् 2010 में रमताजोगी बहता पानी की उक्ति को पूर्णतः आत्मसात करते हुए घाट-घाट का पानी पीते हुए इस पानीदार कलमकार का राजकीय यात्रा के अन्तिम मुकाम पर रा.उ.मा.वि.सेंती, चित्तौड़गढ़ में आगमन हुआ ।
भाषा की प्रांजलता, मोती सदृश हस्तलेखन, चित्ताकर्षक सहृयता, हंसवाहिनी के अनंत दुलारे, कुशल शब्दशिल्पी, मौन चित्रकार, विधिज्ञाता, विनोदप्रिय, अल्पभाषी, क्षत्रिय कुलानुकुल स्वाभिमान के अनूठे पूजारी, स्वभाव में न्रमता, मूंछ में वक्रता मुखारविन्द पर सदाबहार स्नेहिल हंसी, गीतों के बेताज बादशाह, हीरकहार सदृश स्मितमयी अखण्ड रसधारी रसना
स्वर्ण रश्मियों से अलंकृत रक्तिम नयन जहां मुसाफिर को आज भी सकुन मिलता यह अर्न्तमन कितना अदभुत मधुवन है।
राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर की कई पत्रपत्रिकाआंे में आपकी रचनाएँ अनेकानेक बार प्रकाशित होती रही। कवि-सम्मेलन के मंचों के चिरस्मरणीय लघु हस्ताक्षर को कभी कंगुरे की चाहत नहीं हुई। नींव के पत्थर बन कर भी अनंत अनुभुतियों के सुख-सागर में आजीवन आकण्ठ आप्लावित रहे। बेडमिन्टन और बॉस्केटबाल 25 वर्षों तलक तारीफे काबिल हमसफर बनकर शिविरा मंत्रालयीक कर्मचारी खेलकूद प्रतियोगिता में न केवल उदयपुर मण्डल का प्रतिनिधित्व कर कई बार राज्य स्तरीय खिताब जीते बल्कि अखिल भारतीय सिविल खेलकूद प्रतियोगिताओं में भी 3 बार चयनित हुए। विभागीय मंत्रालयिक कर्मचारी राज्य स्तरीय सम्मान पाया। साथ ही 15 वर्षों तक लगातार मेवाड़ क्षत्रीय महासभा छोटीसादड़ी के ‘अध्यक्ष’ पद पर रहते हुए समाज-सेवा की। ‘‘कर्मण्यवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन’’ की उक्ति को हृदयस्थ करते हुए सतत सक्रिय इस कर्मयोगी को जौहर स्मृति संस्थान, चित्तौड़गढ़ द्वारा महारानी पद्मनी अलंकरण, उपखण्ड प्रशासन प्रतापगढ़ राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरीय विभिन्न सम्मान ने, आपके बहुमुंखी व्यक्तित्व को समय-समय पर नवाजा और तराशा है।
तेजपाल, चक्रपाल और इन्दिरा तीन सितारों ने ही आपके सामाजिक व्यक्तित्व में चार चाँद लगा दिए। हर्षिता, कीर्ति, नटवरसिंह, धर्मेन्द्रसिंह और वन्दना इत्यादि के समेकित कलरव की सुमधुर अनुगंूज, नवपल्लव से अदृश्य कर-कमल, चिर मंगलाकांक्षियों की थकी-थकी सी नजरें, आज अश्रुमय आनन से अस्ताचल को ढ़लते अथक दिनकर के सफल साक्षात्कार हेतु चिरप्रतिक्षारत है।
आज संध्यासुन्दरी राजकीय यात्रावृतांत के अन्तिम पृष्ठ पर सत्यम् शिवम् सुन्दरम् लिख इति श्री के हस्ताक्षर करती हुई अगले अरूणोदय की स्वर्णिम सुषमा में जीवन का नवीन विहंगम् अध्याय के शुभारम्भ हेतु अत्यातुर लगती है।
आप स्वाध्यायी, चित्रकारी, साहित्य सृजन, आत्मोद्धार हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते हुए समाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा में सदैव, तत्पर रहेंगे इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ पुनश्च श्रद्धावनत्।
विद्यालय परिवार
रा.उ.मा.वि. सेंती, चित्तौड़गढ़ (राज.)
दिनांक: 31.12.2012