Shree Madhav Lal Jat

 अभिनन्दन-पत्र 
श्रीमान् माधवलाल जाट,
 ‘‘प्रधानाचार्य’’
रा.उ.मा.वि. सोनियाना (भदेसर) चित्तौड़गढ़ 
         वीणा पाणी का लाड़ला, शब्द शिल्पी, नाद-ब्रह्म का अनन्य उपासक, शब्द
सेवारम्भ सन् 1977
Madhav Lal Jat
कोष का सिद्ध साधक, स्वर रसायन का सुविख्यात ज्ञाता चित्तौड़गढ़ जिले की तह. निम्बाहेड़ा का गांव- धनोरा की मिट्टी का यह पुरूषार्थी दीपक जो लक्ष्य की बाती और श्रमबारी के तेल से ऐसे शुभ मुहूर्त में प्रज्वलित हुआ कि जिसका उजाला हर पल इस तरह बढ़ता रहा कि बहिन ख्याली, भगवती और केसर का भाई, कृषक कुलश्रेष्ठ श्री भूरालाल जी जाट एवं जड़ाव बाई का लाखीणा हीरा, कस्तूरी बाई की कन्या बद्रीदेवी का जीवन साथी श्री माधवलाल आज मेवाड़ांचल में आंग्ल भाषा विशेषज्ञों की जमात का वो लाजवाब कोहिनूर है जिसने राजकीय सेवाकाल में हजारों की तादाद में  भटकते  जुगनूओं को बेहतरीन तालीम और अपने रूहानी नूर से  सराबोर करते हुए तरक्की की राहांे पर मंजिल की ओर दौड़ना सीखा दिया।

          दिनांक 01.08.1954 को जन्मे शिक्षाविद् श्री माधवलाल जी ने प्राथमिक शिक्षा गांव आसावरा माता में अपने भुआजी एवं फूफाजी गंगाबाई-   सोलालजी एवं नौजीबाई-पोखरजी के पास रहकर एवं माध्यमिक शिक्षा भदेसर से प्राप्त कर उच्च शिक्षा हेतु शक्ति -भक्ति की पावन नगरी चित्तौड़गढ़ के गवर्नमेन्ट एम. पी . काॅलेज से सन् 1975 में अंग्रेजी विषय के साथ स्नातक और बी.एड. काॅलेज डबोक (उदयपुर) से सन् 1976 में बी.एड. की उपाधि प्राप्त की।

         सौभाग्यरूपी अतिथि के आगमन की चिरप्रतीक्षा में श्री जाट प्रतिदिन राह देखा करते थे। आखिरकार एक दिन 19.12.1977 को पोस्टमेन की पौशाक में अचानक एक देवदूत आया, उन्होंने व. अ. (अंग्रेजी) पद का नियुक्ति आदेश देते हुए भीलवाड़ा जिलान्तर्गत रा.मा.वि. चितांबा की ओर तर्जनी से ंसंकेत किया। चितांबा, कुलथाना, चिकारड़ा, फलवा में 13 वर्षों तलक मुक्तकण्ठ से आंग्ल भाषामृत बाँटते हुए सतत् अध्ययनशील रहते हुए यह विलक्षण व्यक्तित्व सन् 1981 में स्वंयपाठी के रूप में राजस्थान विश्वविद्यालय से एम. ए.  (अंग्रेजी साहित्य)  की उपाधि प्राप्त करता हुआ  शिक्षा-सदन के उच्च सोपानों की ओर बढ़ता ही रहा। जिसका सुखद परिणाम यह रहा है कि दिनांक 02.04.1989 को प्राध्यापक अंग्रेजी के पद पर पदोन्नत होकर रा.उ.मा. वि. भदेसर पधारें। अभी वहां पंच वर्षीय योजना पूर्ण हुई ही नहीं थी कि खुशनसीबी ने इस मेहनतकश इंसान के दरवाजे पर आकर आर.पी.एस.सी. से प्रधानाध्यापक पद पर चयनित होने की खुशखबरी दी और आपने रा.मा.वि. साड़ास से प्रशासनिक सेवा की शुरूआत  की ।

        साड़ास, अरनियाजोशी, लसड़ावन, सोनियाना, काटुन्दा और सुरपुर आदि स्थानों पर 12 वर्षो का एक जुग बीताते हुए दिनांक16.08.2007 को अग्रिम पदोन्नति पाकर आप प्रधानाचार्य रा.उ.मा.वि.विजयपुर पधारे, जहां से एक सत्र उपरान्त आपका दिनांक 08.09.2008 को स्थानान्तरण  रा.उ.मा.वि. सोनियाना (भदेसर) हुआ।  जहां 6 वर्षो तक सराहनीय सेवाओं के लिए सुविख्यात हुए।


सेवानिवृत्ति सन् 2014Madhav Lal Jat 
          तालीम की दुनिया में होने वाले हर ईजाद को उसकी जरूरत और बारीकियों को बड़े इत्मीनान से समझने वाला हर मुनासिब जानकारियों और तब्दीलियों का तलबगार यह शानदार मुसाफिर आज भी तरक्की की राह पर हर रोज दो कदम आगे बढ़ने का हौंसला रखता है। इसी तरहां की दिमागी मशक्कत करते हुए अपने हुनर के खज़ाने में इज़ाफा करने के वास्ते आपने 1987 में पी.जी.सी.टी.ई. (अंग्रेजी) का कोर्स लखनऊ से और 1993 में पी.जी.डी.टी.ई. (अंग्रेजी ) का  डिप्लोमा कोर्स हैदराबाद से किया। सन् 2010 में यूकेरी दिल्ली में अंग्रेजी शिक्षण एवं प्रशासनिक कुशलताओं में अभिवृद्धि हेतु आयोजित कार्यक्रमान्तर्गत आपने राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। प्रधानाध्यापक एवं प्रधानाचार्य वाक्पीठ में आपने अध्यक्षीय पद को भी सुशोभित किया।  माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर की माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर की अंग्रेजी विषय की पाठ्यपुस्तकों के अध्यापन कार्य के साथ-साथ सम्पादन कार्य भी किया, जो सम्पूर्ण मित्र-मण्डली के लिए गौरव का विषय है ।
        निजी पुस्तकालय में सतत् अध्ययनशील और मुक्त कण्ठ से माँ भारती का विद्या-धन बाँटनेवाले इस अथक कर्मवीर ने बरसों तलक पूर्ण मनोयोग से पढ़ाने का पुनीत कार्य किया। पूर्णतः भय मुक्त, अनुशासित एवं हास्यमय शैक्षिक वातावरण से कक्षा-कक्ष में  ‘‘ नो बोर, वन्स मोर’’ की ध्वनियां समय-समय पर प्रतिध्वनित होती रहती थी। जिला स्तरीय एवं राज्य स्तरीय शिक्षक प्रशिक्षणों में आप द्वारा दी गई विजय मंत्रों की पतवारों से न जाने कितनी नौकाएं पार हुई। आपके सरल, सहज, हंसमुख, आकर्षक और मेहनती मिज़ाज ने हजारों मुरझाए हुए फूलों को तालीम और तरक्की की रौनक दे ताजिन्दगी खुशबूदार बना दिया।

           यूँ तां कारवां हर रोज आगे बढ़ता ही रहा मगर समय की सुईयां 36 वर्ष 7 माह का सफर पूरा कर आज इस जांबाज को लवाजमें से विदा करती हुई  खामोशी के लब्जों में पसीना पौछंते हुए अब अपने घर-आंगन में कुनबे के साथ कुछ गहरे आराम की हिदायते देती है, जहां बड़ी बेताबी से इन्तजार कर  रही राजेश-निर्मला, जे.पी.-ज्योतिर्मय, मंजू-देवीलाल जी, अंजना-रतनलाल जी, स्नेहलता-उदयलाल जी की गुलाब सी वे शबनमी आँखें जिनकी कहीं लम्बी-लम्बी दास्ताने तो कहीं बड़े-बड़े अफसाने हंै। 

            सेवानिवृत्ति के बाद आपका ज्यादातर वक्त देवोपासना, पठन-पाठन, चिंतन-मनन, लेखन-सृजन, समाज सेवा-राष्ट्र सेवा इत्यादि अनेकानेक कार्यक्रमों में व्यतीत हो, इन्हीं शुभकामनाओं  के साथ समस्त आत्मीय जनों की ओर से आपको पुनश्च कोटि-कोटि प्रणाम।

दिनांक: 31.07.2014 

श्रद्धावनत -
विद्यालय परिवार
रा.उ.मा.वि., सोनियाना (भदेसर)
जिला-चित्तौड़गढ़


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Abhinandan Patra : Gunmala Jain , Chittorgarh

अभिनन्दन-पत्र 
श्रीमती गुणमाला जैन,
 प्रधानाचार्य रा.बा.उ.मा.वि. स्टेशन, चित्तौड़गढ़


    मालवांचल का महानगर, मायानगरी का अनुज, अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों से सुसज्जित, अनन्त
 सेवारम्भ सन् 1985
प्रगति पथ का अहर्निष धावक, शील से विकासषील, सतरंगी सृजनधर्मिता का अतिसक्रिय स्थल, नैसर्गिंक सौन्दर्य का अक्षय भण्डार, रेल- मार्ग का मकड़ शाजाल, कोटि-कोटि नयनों का त्राटक बिन्दु, होल्कर सक की योग्य उत्तराधिकारिणी सुषासिका देवी अहिल्या की गौरव-गाथाओं से सतत् अनुगुंजित सदासुखद इन्दौर महानगर निवासी जैन सम्प्रदाय के लोढ़ा कुलश्रेश्ठ अथक कर्मवीर स्व. श्री रूपचन्द लोढ़ा, एवं श्रीमती गौरी बाई की सुकन्या ,दुर्लभ गुणों की खान,अनन्त आभा युक्त मुक्तावली की  भांति, शीतल , स्नेहिल, अक्षय गुणों की माला ‘गुणमाला’ का जन्म दिनांक 18.01.1958 को  राजस्थान के झालावाड़  षहर में हुआ।    
    अक्षरब्रह्म की आराधिका, माँ शारदा के पावन मन्दिर की अबूझ ज्ञान-पिपासु, अनन्त की ओर आकर्शित सतत् प्रज्वलित इस मौन दीपिका के स्वर्णिम ज्योतिर्मयी दीपषिखा ने षिक्षा के प्रथम सोपान से ही स्वानुषासन की अन्तर्षक्ति से निरंतर बढ़ना सीखा। शहर के बहुचर्चित महाविद्यालय, गल्र्स डिग्री काॅलेज से आपने सन् 1977 में कला संकाय में स्नातक, सन् 1979 में स्नातकोत्तर ( हिन्दी ), बी.एड.  काॅलेज इन्दौर से सन् 1981 में बी.एड. की उपाधि प्राप्त की। इस समग्र षिक्षा में एम.पी.विद्युत बोर्ड में यू.डी.सी. पद पर कार्यरत एम.ए.एल.एल.बी. डिग्रीधारी, काव्यरसिक, जो षौकियाना तौर से कई सम्पादकीय कार्यों से भी जुडे़ रहे, स्व.श्री रूपचन्दजी जैन जिनकी सतत् प्रेरणा, समयानुकूल उत्साहवर्धन, षुभकामनाएं और ममतामयी माता गौरीबाई की षुभाषीशमयी उच्चाकांक्षाएं आपके षैक्षिक जीवन के कंटकाकीर्ण मार्गों पर परछाई की भाॅति सषक्त सहयोगिनी बनकर सदैव साथ चलती रही।
     दिनांक 3 फरवरी, 1982 को टोंक निवासी श्री मूलचन्द जी पालेचा के प्रथम पुत्र श्रीचन्द्रप्रकाष जी के संग पावन परिणयोत्सवान्तर्गत जीवन पथ पर संग चलने का गठबंधन हुआ। दिनांक 01.03.1983 को पुत्र रत्न हिमांषु के जन्म के साथ ही गृहस्थाश्रम के अनन्त वांगमय का प्रथम अध्याय पूर्ण हुआ। दिनांक 01.05.1984 को पुत्री प्रियंका के जन्मोत्सव के गीतों की संगीतमय सुरीली ध्वनियों ने आपको अपनी किषोरावस्था के पुनरागमन के साथ ही  सुखद बहुरंगी अतीत की अनेक  स्मृतियों को जीवंत कर दिया।  दिनांक 16 फरवरी 1985 को उदयाचल के बालरवि की स्वर्णिम रष्मियों में सफलता रूपी नवजात षिषु की आल्हादित किलकारियों ने आपके मन उपवन को ऋतुराज बना दिया। उसी दिन तृतीय श्रेणी अध्यापक पद से आपकी राजकीय यात्रा का आगाज हुआ।

    कर्म-भूमि के प्रगति पथ पर साधना के सारथी ने अभी संयम की लगाम थामी ही थी कि दिनांक 15.07.1985 को देवागंना सी षुभ घड़ी प्रारब्ध की थाली में प्राध्यापक का चयनोपहार सजाती हुई प्रकट हुई। आर.पी.एस.सी. से चयनोपरान्त 13 वर्शों के लिए आप रा.बा.उ.मा.वि.षहर चित्तौड़गढ़ पधारी जहां हस्तलिखित पत्रिका प्रतियोगिता में प्रति वर्श जिला एवं मण्डल स्तर पर प्रथम एवं राज्य स्तर पर दो बार प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए चित्तौडगढ़ जिले के गौरव और स्वयं के लेखन-कौषल में अभिवृद्धि की, यहीं रहते हुए विद्यालय की गाइड्स के साथ सन् 1987 में अन्तर्राश्ट्रीय जम्बूरी सिकन्दराबाद एवं सन् 1989 में राश्ट्रीय जंबूरी भोपाल में भाग लेकर जन-जन में सेवा-कार्य एवं विष्वबन्धुत्व की भावना को बढ़ाया। यहां से स्थानान्तरित होकर दो माह के लिए आप रा.बा.उ.मा.वि. कपासन गई, जहाँ से दिनांक 28.08.1998 को चयनोपरान्त डाईट में 15 वर्शों तक षिक्षक प्रषिक्षक के मुख्य कार्य के साथ-साथ आपने आई.एफ.आई.सी. प्रभाग के अन्तर्गत प्रकाषन कार्यों में विषेश रूचि लेते हुए फोल्डर, बुकलेट के प्रकाषनार्थ मुख्य उत्तरदायित्वों का निर्वहन किया। ‘कर्मण्यवादीकारस्ते माँ फलेशु कदाचन’ की उक्ति के उच्च स्तरीय दर्षन को आत्मसात् करते हुए आपने पाँच जिला स्तरीय षोध कार्य पूर्ण किए। सन् 1994 में हिमाचल प्रदेष से एम.एड. की उपाधि प्राप्त करते हुए अपने व्यावसायिक ज्ञानानुभव मेें  आषातीत अभिवृद्धि की। सन् 2007 डाईट में आपका वरिश्ठ व्याख्याता के पद पर विभागीय चयन हुआ।

    दिनांक 11.05.2013 को प्रधानाचार्य पद पर रा.बा.उ.मा.वि.स्टेषन पधारी। जहां 14 माह की अल्पकालीन सेवा अवधि के साथ ही जीवन सरगम के सुर बदले। परमपिता परमेष्वर के अनन्त हाथों की अंगुलियों से बन्धे हुए अदृष्य धागों के निरंकारी आकर्शण के गहन चिन्तन के साथ ही अन्तःकरण के महासागर में यदा-कदा कई लहरें उद्वेलित होती रही। पारिवारिक मानस मंथनोपरान्त प्राप्त वैचारिक नवनीत ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के निर्णय की सराहना करते हुए त्वरित क्रियान्विति हेतु प्रेरित किया।

    29 वर्शीय गौरवमयी सेवा अवधि पूर्ण कर वीणापाणि के चरणारविन्दों की यह अनन्य अनुरागिनी अन्तर्मुखी
 सेवानिवृत्ति सन् 2014
हो आज जीवनारण्य में सुख-दुख मिश्रित भांत-भांत के उठते चक्रवातों को, महासागर में हठी बालक की भांति मचलते स्वछन्द हिलोरों को येन-केन-प्रकारेण सम्भालती हुई, चहुं ओर समग्र अविस्मरणीय स्मृतियों का प्रज्ञा-चक्षुओं से अवलोकन कर,अवरूद्ध कंठ से, नैनों के गंगाजल से विदाई ताप से मुरझाई इन कारूणिक प्रेम वल्लरियों का पूर्णापूर्ण सिंचन करती हुई, राजकीय सेवाकाल के इस सारगर्भित अन्तिम उद्बोधन के चंद षब्दों में ही सबकुछ कह देने का साहस जुटाती हुई ‘गागर में सागर’ की उक्ति को सार्थक करती हुई कुछ स्मृति-चिन्हों के सहारे समस्त राजकीय बन्धनों से मुक्त हो, थके हुए पंखों से फिर अथक उड़ान भरती हुई नीलगगन की यह प्रिया कोकिला अब अस्ताचल में ढ़लते सूरज को तकती है। जहां स्वनिर्मित नीड़ से मुँह निकाले झांक रहे हिमांषु- प्रियंका- प्रेक्षा, प्रियंका-नवनीत-श्रेयांषी जिनके करकमलों में बहुरंगी विजयमालाएं आपके पुनरागमन की प्रतीक्षा कर रही है। सेवानिवृत्ति उपरान्त आप अधिकाधिक स्वाध्याय, चिन्तन, मनन, साधना, लेखन इत्यादि कई धार्मिक कार्यक्रमों में अधिकाधिक समय देते हुए इस जीवन-कंचन को कुंदन बनाने में पूर्णतः सफल होएंगी। इन्हीं कोटि-कोटि षुभ कामनाओं के साथ समस्त आत्मीयजनों की ओर से आपको पुनःप्रणाम।

Abhinandan Patra : Gunmala Jain Chittorgarh

Shree Randhir Singh Suhag : Ahinandan Patra


अभिनन्दन-पत्र 
श्री रणधीरसिंह सुहाग
विद्यालय परिवार, रा.उ.मा.वि., सैंती, जिला-चित्तौड़गढ़ (राज.)
 

धन धान्य का अथाह भण्डार, हरियाली से भरपूर हरियाणा राज्य के झझ्झर जिले की बेरी तहसील में बिसाहन, लगभग 500 परिवारों का सुसम्पन्न एवं प्रसिद्ध गाँव है। जहाँ के घरों में बेटे मात्र मातृभूमि पर न्यौछावर होने के वास्ते ही जन्म लेते हैं। ‘सुहाग’ कुल का राष्ट्रीय गौरव चित्तौड़गढ़ सैनिक स्कूल का उत्कृष्ट मेघावी छात्र श्री दलवीरसिंह सुहाग थल सेनाध्यक्ष के पद पर देश के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखी जाने वाली चिरस्मरणीय सेवाओं के वास्ते अद्य दिवस कत्र्तव्यारूढ़ है।
बिसाहन के मूल निवासी आंग्ल-उर्दू और हरियाणवी भाषाओं के सफल जादूगर, करतार की भांति सतत् सृजनशील स्व. श्री करतारसिंह सुहाग सेमी गवर्नमेन्ट द्वारा संचालित एक रोड़ कन्स्ट्रक्शन कम्पनी में कार्यालयाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए अपनी सराहनीय सेवाओं के लिए सर्वत्र सुविख्यात थे। गाँव डीघल निवासिनी एहलावत गौत्र की सुयोग्य कन्या नौकरी के कारण परदेश रहने वाले पति के उत्तरदायित्वों को भी बखूबी निभाने वाली परम सौभाग्यशालिनी स्व. श्रीमती चन्द्रपति देवी ने आपकी अद्र्धांगिनी बन रणधीरसिंह, बलराजसिंह, राजवीरसिंह, विमला, निर्मला, कमला नामक कुल छः पुत्र-पुत्रियों को जन्म दिया। आपकी गृहस्थ वाटिका में दिनांक 18/02/1954 को रणधीरसिंह सुहाग नामक ज्ञान-रश्मियों से आलोकित प्रकाश स्तम्भ की भांति सतत् ज्योतिर्मय एक ऐसा आयताकार गौरवर्णी, ओजस्वी पुष्प खिला जिसने पूरे गुलदस्ते को अपनी खुशबूओं से सराबोर कर दिया।
जन्म स्थान में ही प्राथमिक शिक्षा ले तहसील विद्यालय बैरी गए, जहाँ से उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर, सन् 1974 में एन.आर.एस. राजकीय महाविद्यालय रोहतक से स्नातक उपाधी प्राप्त की। प्रगति पथ के इस अबुझ ज्ञान पिपासु, अथक सारथी ने मेरठ विश्वविद्यालय के दिगम्बर जैन काॅलेज बड़ोत से सन् 1977 में प्रथम श्रेणी से भूगोल विषय में स्नातकोत्तर एवं सन् 1978 में एम.डी. यूनिवर्सिटी रोहतक से बी.एड. की उपाधी उपरान्त आपके युगल नयन नौकरी रूपी नव अरूणोदय की प्रथम स्वर्णिम रश्मि से भावी अनन्त सुखद साक्षात्कार की आतुरता में उदयाचल के उच्चतम् शिखरों के तरूओं की फलदार झुकी डालियों के नवपल्लओं पर बारम्बार त्राटक करने लगे।
एन.सी.सी. ‘बी’ सर्टिफिकेट धारी श्री सुहाग की दिनांक 02/04/1982 को सर्वत्र सुवासित समग्र शब्द साधना सारे अवगंठुनों को विदीर्ण करती हुई नैसर्गिक गति से मुस्कराती हुई मुखरित हुई। नवप्रभात के मलियानिल से सुवासित ओजस्वी राजकुमार ने एक हाथ में नियुक्ति आदेश की प्रति ले दूसरे हाथ से राजभवन का भाग्योदय द्वार खटखटा कर चित्तौड़गढ़ पंचायत समिति के प्रा.वि. बराड़ा व सेमलिया की राह दिखाई।
दिनांक 19/12/1984 को तृतीय श्रेणी अध्यापक के पद पर विभागीय नियुक्ति लेकर अरनोद पंचायत समिति के रा.उ.प्रा.वि. साखथली थाना गए। जहाँ से स्थानान्तरित हो रा.उ.प्रा.वि. बड़ोदिया (चन्देरिया) में एक पखवाड़ा पूर्ण कर अंग्रेजी विषय में व.अ. पद पर पनोन्नत हो दिनांक 06.04.1984 रा.मा.वि. ताणा (आकोला) पधारे। वहीं 4 वर्ष 6 माह तलक उल्लेखनीय सेवाएं देते हुए 1) माह के लिए सिंहपुर, 6 दिन भट्टों का बामणिया रह कर जिला मुख्यालय की दिशा में रा.मा.वि. ओछड़ी आए। जहाँ आपने एक जुग तक अपनी ऐतिहासिक सेवाएं दी।
दिनांक 10/11/2000 को सेवाकाल की द्वितीय पदोन्नति इसलिए भी अद्वितीय रही कि 6 माह तक रा.उ.मा.वि. प्रतापगढ़ में आपको आपके प्रिय विषय भूगोल शिक्षण के दौरान अनेकानेक जीर्ण-शीर्ण स्मृतियां एकाएक जीवन्त हो उठी। समीपस्थ रा.उ.मा.वि. बानसेन में दो वर्ष प्राध्यापक (भूगोल) पद पर सेवाएं देते हुए ढ़लती दोपहरी की भांति दिनांक 26/06/2003 को ऐसी शुभ घड़ी नक्षत्रों में रा.उ.मा.वि. सेंथी पधारे कि 11 वर्षोपरान्त माँ वीणा पाणि की यही पुण्यभूमि पूर्णाहूती की पावन वेदी बनी। वेदी से उठता हुआ, आज यह स्वच्छंद धूँआ निजी आवास की ओर स्वतः गतिशील हो रहा है।

‘कार्य ही पूजा है’ उक्ति को अपने रोम-रोम में आत्मसात् करते हुए हर नए-पुराने चुनौतियों पूर्ण कार्यों के लिए आप सदैव तत्पर रहे। सहशैक्षिक प्रवृत्तियों में बोर्ड प्रश्न-पत्र निर्माण, खेल प्रतिभाओं के उन्नयन हेतु राज्य स्तर पर विद्यालयी सीनियर व जूनियर वाॅलीवाल प्रतियोगिता में कण्टेजेण्ट लीडर बनकर दौसा जिले में लालसोठ जाना। शिक्षक प्रतियोगिताओं में सफल हिस्सेदारी, विद्यार्थियों के लिए केरिअर गाइडेंस, गत 5 वर्षों से जिला स्तरीय निःशुल्क पाठ्य पुस्तक के बतौर प्रभारी आपकी सराहनीय सेवाएं रही।
कई राष्ट्रीय कार्यक्रम यथा साक्षरता, जनगणना, आर्थिक गणना, पल्स पाॅलियो, सर्वशिक्षा, चुनाव कार्य आदि कई विभिन्न कार्यक्रमों में आपने एम.टी. पद पर रहते हुए श्रेष्ठ सेवाएं दी। जिला रेसला चित्तौड़गढ़ शाखा के कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष रहे एवं वर्तमान में संरक्षक पद पर कार्यरत है। हरिद्वार के पास पतंजली योग गुरु स्वामी रामदेव के सानिध्य में प्रशिक्षणोपरान्त आपने कई योग शिविर आयोजित करवा कर आम जन को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाया।
हालांकि मेहनतकश और स्वाभिमानी नींव के खामोश पत्थर कभी कंगूरे के तलबगार नहीं होते, लेकिन पसीने से तरबतर कागजी सबूतों के खुशबूदार पुलिन्दे जब-जब भी आंला कमानो की टेबलों तक पहुँचते है तो उन्हें वाजिब इनाम, तोहफे, शाबाशियों से नवाजना, वफादार और मेहनतकश लोगों की शान को बढ़ाते रहना सरकारी महकमों के तारीफे काबिल उसूल रहे है। इसी सिलसिले में सन् 2002 में आप तहसील स्तरीय डायरी प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर रहे। 5 सितम्बर 1995 को साक्षरता में सराहनीय सेवाओं के लिए एस.पी. द्वारा सम्मानित हुए। सन् 2012 में राज्यस्तरीय शिक्षक प्रतियोगिताओं में भाग लिया। 5 सितम्बर 2009 को आपको जिलास्तरीय एवं 2 अक्टूबर 2012 को मण्डलस्तरीय सम्मान से आपको नवाजा गया।
32 वर्ष 2 माह 11 दिन की राजकीय यात्रा पूर्णकर अनंत श्रमबिन्दुओं से सुशोभित ताम्रवर्णी क्षीप्रगामी, अथक दिनकर के सफलता और विदाई मिश्रित हर्षातिरेक सजल रक्तारविन्दों की भांति युगल नयनों को राजप्रासादों का समय सारथी आज कानूनी पिंजरे का स्वर्ण सलाखों का द्वार खोल निजी आवास की ओर तनिक विश्राम हेतु तर्जनी से संकेत कर रहा है। जहाँ श्रीमती शुभहिता, सरिता, अम्बुज तरूण, अजय, मयंक, हार्दिक, हर्षिता, अभय, वेदांशी एवं समस्त परिजनों के पुलकित नयन पलक पावड़े बिछाए चिरप्रतिक्षारत है।
भावातिरेक से तनिक कम्पायन लेखनी से इतिश्री लिख अन्तिम हस्ताक्षरोपरान्त पलक झपकते ही कल भौर की स्वर्णिम रश्मियाँ आपकी जीवन गाथा का फिर एक नए अध्याय का शुभारम्भ करेगी। आप अधिकाधिक स्वाध्याय, अध्यापन, चिंतन, मनन, समाज सेवा, राष्ट्र सेवा, योग साधना, ईश्वर भक्ति आदि में एक अनुकरणीय कर्मयोगी की भांति प्रेरणा स्रोत सिद्ध होंगे। इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ हम सभी शुभेच्छुओं का पुनः प्रणाम।
दिनांक: 30.05.2014

श्रद्धावनत:-
विद्यालय परिवार, रा.उ.मा.वि., 
सैंती, जिला-चित्तौड़गढ़ (राज.)


Shree Randhir Singh Suhag : Ahinandan Patra
Govt. Sen. Sec. School , Senthi, Chittorgarh (Ind.)





Shree jamna Lal Athwal : Abhinandan Patra

श्री जमना लाल अठवाल : अभिनंदन पत्र

सर्व पूज्य स्वतंत्रता सेनानियो की सतत् सवायित सुमन श्रंखला को समग्र संसार मे सर्वोच्च स्तरीय शोभायमान करने वालो मे मेवाड़ अंचल के समर भवानी रणचण्डी के अमर पूजारी, अवर्णनीय अनन्त रक्तिम आभायुक्त जन-जन के लाड़ले रूपाजी की कर्मस्थली एवं प्राणोत्सर्ग की पावन नगरी बेगू क्षेत्र के कृषक वर्ग के गौरव स्व. श्री देवीलाल जी अठवाल और श्रीमती प्यारीबाई की गृहस्थ वाटिका मे दिनांक 24-2-1954 को श्री जमनालाल अठवाल नामक एक ऐसा श्यमवणी पुष्प खिला जिसने एक सराहनीय कुल दीपक की भांति ही नही वरन् शिक्षा विभाग के चित्तौड़गढ़ जिले को दीपावली की तरहा रोशन करने बाबत् कई बरसो तलक, लम्बी कामयाबी मशक्कत मे एक लाजवाब मिसाल का किरदार निभाया।
स्नातक तक अध्ययन करने वाले श्री जमनालाल ने भाई प्रवीण कुमार और श्यामलाल,बहिन प्रेमदेवी, विमल, मीरा आर्य और कई सहपाीठयो  के साथ-साथ खेलेते-कुदते जन्म स्थान नन्दवाई से ही प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की। माध्यमिक शिक्षा रा.उ.मा.वि. बेगू से और स्नातक शिक्षा हिन्दी, भूगोल, राजनीती शास्त्र विषयो के साथ जिला मुख्यालय चित्तौड़गढ़ से सन् 1977 मे प्राप्त कर तदुपरान्त अर्थोपार्जन हेतु सरकारी दफ्तरो की ओर मुखातिब हुए। भाइयो और अनन्य बाल सखाओ के समेकित कोलाहल मिश्रित स्नेहिल स्चरो की अनुगूंजित प्रतिध्वनियो से सतत अनुप्रेरित किशोखय मे कर्म और भाग्य के युगल तरंगो से सुसज्जति यह प्रगति रथ, समय सारथी के पदचिन्हो का आदर्थ अनुकरण करता हुआ दिनांक 16-11-1978 को कनिष्ठ लिपिक के पद पर चयनोपरान्त प्रसन्न मुद्रा मे रा.मा.वि. अरनिया जोशी अर्थात् सफलता के प्रथम सोपान पर पहुचा। एक नौसीखिए के रूप मे अपनी सराहनीय सेवाएं देते हुए “जननी जन्म भुमिश्च स्वर्गादपि गरियसी के मूल मन्तव्य को आत्मसात् करते हुए 3 वर्षो मे ही बचपन की बारम्बार कई बाल-स्मृतियो के मौन आमन्त्रण पर स्थानान्तरण द्वारा आप जन्म स्थली नन्दवाई आए। सतरंगी मौसम के बदलते मिजाज की तरहां तबादलो और तरक्कियो से आपके कर्म-क्षेत्रो मे समय-समय पर तब्दीलियां होती रही।
दिनांक 9-2-1990 को वरिष्ठ लिपिक के पद पर पदोन्नत होकर रा.मा.वि. एकलिंगपुरा (चित्तौड़गढ़) गए। बस्सी और बिछोर मे एक जुग तक पदानुकूल चिरस्मरणीय सेवाओ सहित घाट-घाट का पानी पीते हुए रमता जोगी बहता पानी“ की उक्ति को आंशिक चरितार्थ करने हुए प्रगति पथ का यह अथक पथिक का दिनांक 10-2-2013 को ऐसे शुभ मुर्हूत मे रा.उ.मा.वि. सेती आगमन हुआ कि विद्यालय आपके सरकारी सफर का आखिरी मुकाम मुकर्रर रहा।
उच्च अधिकारियो के दिशा-निर्देशो की चाॅक पर जिम्मेदारियो की खुशबू से सुवासित कर्तव्य परायणता की सिद्ध माटी से सुनिर्मित कठोर मेहनत और पसीने के आँवां पर परिपक्व नैसर्गिक हास्य-शैली से परिर्पूएा यह अक्षय पावन घट शबनम सी आँखो सदृथ्श छलकता हुआ हीरे-मोती जैसे तोहिन कणो से युक्त आज एक प्राचीन मौन-साधना शिखर के स्वर्णिम कलश जैसा प्रतीत हो रहा है। सफरनामे मे इतिश्री लिख आखिरी पन्पे को पलटती हुई तनिक विश्राम हेतु कम्पायमान अंगुलियो की कलम अब कलमदान की ओर बढ़ रही है।
पुत्र योगेश सहित परिजनो के चिरप्रतीक्षारत सजल नयन, आँखे मे उमडते सावन-भादवो की घनघोर घटाअसे को बड़ी बेसब्री से संभालती हुई दहलीज पर खड़ी वृद्ध माँ ओर पुत्रियाँ आशा, निशा, रानी के अवस्द्व कण्ठो के सुरीले स्वागत-गीत, पौत्र-पौत्री दक्षराज उर्फ चिडि़याँ और कनिष्क के कंजकरो मे सुशोभित मौन विजय मालाण्ं, ढोल-नगाड़ो की हर्षवर्धक सांकेतिक ध्वनियाँ मुखारविन्द पर बहुरंगी गुलाल, करकमलो मे शोभायमान फलस्वरूप श्रीफल उक्त सभी धुप-छाया की भंाति सुख-दुःख सम्मिलित जीवन वन की समस्त संचित अनुभूतियाँ ही इस आंथिक शाब्दिक-अभिानन्दन को पूर्णता प्रदान करती हुई प्रतीत हो रही है।


सवा पैतीस वर्षो का सरकारी सफर पूर्ण कर सकल बंधनो से नैसर्गिक मुक्ति ले अस्ताचल की ओर बढ़ता हुआ क्षिप्रगामी ताम्रवर्णी तनिक क्लान्त सा यी अथक दिनकर सागर की लहरो का हमराज बनकर कारवां से दूर आज इस लवाजमे की तमाम नजरो से ओझल होने को आतुर लगता है। हीरक हार सी सुजज्जित तमस की श्यामल सेज पर तनिक विश्रामोपरान्त कल भौर की स्वर्णिम रश्मियाँ क्रमथः कर्म रेखाओ मे प्रारब्धानुसार परिवर्तन करती हुई नियमित स्वाध्याय, समाज सेवा, ईश्वरोपासना की ओर आनको सतत अग्रेषित करती रहेगी, विद्यालय परिवार की यही कोटि-कोटि शुभकामनाएँ है।



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